वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, जो थी वीरता की परम्परा, उठी खड़ी हुई वह स्वतंत्रता की पहरेदारा।
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सुनहरे अरमानों से सजी थी उसकी ज़िन्दगी, मातृभूमि के लिए दी थी उसने अपनी बलिदानी।
जन्मी थी वह बंदी संस्कारों की राजपुतानी, लड़ी थी वह सम्राटों की नगरी के खिलाड़ी।
महाराणा प्रताप की संतान थी वह, शौर्य और धैर्य के प्रतीक थी उसकी पहचान।
अनगिनत गर्व से भरी थी उसकी वीरता, स्वतंत्रता संग्राम की नई परिभाषा।
साहस से भरी थी उसकी आंधी-धवल दृष्टि, अंग्रेज़ों को चिढ़ा देती थी वह उनकी चाल-धर।
बुलंद था उसका विश्वास स्वतंत्रता में, कौरवों को ध्वस्त कर देती थी उसकी साहसिकता।
वीरता का पर्याय थी वह रानी, जयजयकारों से गूंजी थी उसकी निगाहें।
वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की गाथा, बनी भारतीय स्वतंत्रता की प्रेरणा।
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